मेरे प्रिय बापू | Katha sunne ke fayde (Post No:3 2024)

अपने फ्लावर्स को निरंतर “श्रीरामकथा” का रसपान कराके; उन्हें आराम, विराम और विश्राम प्रदान करनेवाले परम् शीतल संत यानी “मेरे प्रिय बापू” |

मेरे प्रिय बापू

काफ़ी लोग बारम्बार पूछते है कि, हम कथा क्यों सुने? कथा सुनने सें हमें क्या लाभ होगा? कथा सुननेसें हमारे जीवनमें क्या परिवर्तन आयेगा? तो इस प्रश्नका उत्तर पूज्य बापू देते है कि, कथा सुननेसें जीवकों परम् विश्रामकी प्राप्ति होती है, जो उन्हें ओर कहीं भी नहीं मिल सकता | संसारकी भौतिक वस्तुओसें मिलनेवाला विश्राम नश्वर है, क्षणिक है, ज़ब की कथामृतका पान करनेसें जो विश्राम प्राप्त होगा, वो तो शाश्वत और परम् विश्रामदायी है | तभी तो तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानसके अंतमें अपने ह्दयका भाव प्रकट करते हुए लिखते है, “पायो परम् विश्राम राम समान प्रभु नाही कहुँ” | प्रभुके गुणगान गानेसें मुझे विश्रामकी नहीं बल्कि परम् विश्रामकी प्राप्ति हुई |

इसके अलावा पूज्य बापूका कहना है कि, रामकथा श्रवणका फल तभी समझो ज़ब कुछ अनावश्यक तत्वोंका हम त्याग कर सके उस त्यागसें क्या प्राप्त होगा? वह पूज्य बापू हम लोगोे के कल्याण के लिये बता रहा है,

1.अहंकार – अहंकारसें पूर्ण मात्रामें मुक्ति हुई तब जानो ज़ब तुमको लगे कि अभिमान करना बड़ा पाप है 2.अधिकार – अधिकार छूटा तब जानना कि मनमें लगे में सबका, मेरा कोई दावा नहीं |
3.अंधकार – अंधकार छूटा माने प्रगाढ़ मोह अंधकार मिटा |
4.असहकार – असहकार छूटे यानी मेरा सबको सहयोग मिले जितना मैं कर पाउँ |
5.अलंकार – अलंकार छूटना मतलब सभी विशेषणो सें मुक्ति मिल जाये
|

कथा सुननेसें ये पांच वस्तुऐ व्यक्तिके जीवनमें छूट जाती है और दों स्थिति पैदा हों जाती है और वो दों स्थितिका नाम है,

1.अविकार – व्यक्तिमें कोई विकार नहीं बचता |
2.अविष्कार – और अंतमें हों जटा है अविष्कार | कोई परम् अनुभूतियों सें साधक भर जाता है और प्रभ का मिलन हों जाता है |

Author – Shree Ramkathakar Punitbapu Hariyani

Exit mobile version