कुम्भ पर्व का वैज्ञानिक महत्त्व | Kumbh Parv Ka Vignan

“कुंभपर्व और विज्ञान”

कुंभपर्व भारत का प्राचीनतम पर्व है | यह पर्व तो प्रभु श्रीराम और कृष्ण दोनोसें भी प्राचीन है | कुंभ शब्दका अर्थ होता है “घड़ा, बर्तन, सुराही” | यह शब्द भी अत्यंत प्राचीन है | यह शब्द ऋग्वेद और अन्य प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में भी पाया जाता है। कुंभ पर्वका अर्थ होता है “अमरत्व का मेला” | हम सभी अच्छी तरहसें जानते है कि, पृथ्वीपर ग्रहोका प्रभाव पड़ता है और यह कुंभपर्व उसी विज्ञान पर ही आधारित है | सभी सनातनी जानते है कि, पूर्ण कुंभ बारह वर्षोके अंतराल पर पड़ता है | इसका कारण यह है कि, बारह वर्षोकें बाद बृहस्पति ग्रह मेष और सूर्य-चंद्र राशियोंमे होते है | आकाशमें यह युक्ति विशेष महत्वपूर्ण होती है और पृथ्वीकें जीवोंके लिये हितकारी होती है | खगोलशास्त्र और गणितशास्त्रने भी इसबात का स्वीकार किया है |


कुंभपर्वमें ग्रहोकी तरह ही नदियोंका भी एक विशेष महत्त्व होता है | महाकुम्भकें दौरान सूर्य, चंद्र और बृहस्पति तीनोंका सकारात्मक प्रभाव गंगानदीके जलराशि पर पड़ता है, जो गंगाजलको दैविकरूप सें शक्तिशाली बना देता है | जिसका सीधा प्रभाव स्नान करनेवाले व्यक्ति पर भी पड़ता है |


कुंभपर्वका विज्ञान यह है कि, ज़ब आकाशमार्गमें सूर्य, चंद्र और बृहस्पति ग्रह बारह वर्षोके अंतराल बाद मिलते है, तब उनकी इस युतिसें उस समय विशेष तरंगे निकलकर भारतकें प्रयाग भू-भाग पर बहती गंगा पर पड़ती है | उन विशिष्ट तरंगोंकें जलसें मिलनेपर वह जलराशि कुछ समयकें लिये दैविक हो जाती है | इस दौरान कोई व्यक्ति जलमें विधिवत स्नान करता है, तो अवश्य रोगमुक्त बनता है | शरीरकें भीतर और बाहरकें कुछ रोग मिट जाते है |

कुंभपर्वका खगोलीय, गणितीक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व होनेकें कारण ही हरेक सनातनीओं को कुंभपर्वमें जाकर गंगामें अवश्य स्नान करना ही चाहिये |

श्रीरामकथाकार – पुनीतबापू हरियाणी

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