राम शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई | Ram shabd ki utpatti kaise huyi

“राम” को महामंत्र क्यों कहते है?

राम शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई

राम शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई विस्तारसें जानिये | वेदरूपी महासमुद्रसें रामायणका अवतरण हुआ है | रामायणके 100 करोड़ श्लोकोंमें रामजीके चरित्रका वर्णन किया गया है | इस 100 करोड़ श्लोकके बटवारे के लिये देव, दनुज और मनुज (मनुष्य) आपस में लड़ने लगे | ज़ब बँटवारा शरू हुआ तो प्रारम्भमें तैतिस-तैतिस करोड़ श्लोक तीनों के हिस्से में आये | अब बचें एक करोड़ श्लोक | एक करोड़ श्लोकका फ़ीरसे बँटवारा किया गया तो अबकी बार तैतिस-तैतिस लाख श्लोक तीनोंके हिस्से में आये | फिर भी एक लाख श्लोक बच गये | इस बार तैतिस-तैतिस हजार करके श्लोककों बाँटा गया | उस पर ज़ब 1000 श्लोक बच गये तो उसे तीन-तीन सौ करके तीनोंमें बाँटा गया | सब श्लोको के बट जानेके बाद भी 100 श्लोक बच गये, जिन्हे 33-33 करके तीनोंके बिच बाँट दिया गया | इस बटवारे के बाद भी एक श्लोक बच गया जो अनुष्टूप छंदका था, जिसमे 32 अक्षर थे | आखिरमें बचे इन 32 अक्षरोंकों दस-दस अक्षर करके बाँटा गया | अब भी 2 अक्षर शेष बाँटने के लिये बचे रह गये, पर इसके बाँटने के समय एक विकट समस्या थी क्योंकि 2 अक्षर शेष थे और लेनेवालों की संख्या तीन थी | किसीके पास भी इस समस्याका हल नहीं था | इसलिए इसके निर्णय के लिये ज़ब भगवान शंकर सें पूछा गया तो उन्होंने सहज ही कह दिया कि, इन दोनों अक्षरों कों हमें दे दो और सर्वसम्मति सें उन दोनों अक्षरों का भगवान शंकरने स्वीकार किया |

यही दो अक्षर है “राम” | आज भी भगवान शंकर निरंतर इन दोनों अक्षरोंका (श्रीरामनाम) का जप करते है |

तुलसीदासजीने रामचरितमानसमें भगवान शंकरके इस “रा” और “म” के प्रेम को अनेको जगहों पर दर्शाया है,

महामंत्र जोई जपत महेशू |
कासी मुकुति हेतु उपदेशू ||

तुम्ह पुनि राम राम दिन राती |
सादर जपहुँ अनंग आराती ||

यहाँ तक कि शिवजीने “राम” के लिये अपनी प्रिय पत्नी को भी त्याग दिया था | मानसमें इस बातका भी वर्णन मिलता है,

सिव सम को रघुपति ब्रतधारी |
बिनु अघ तजि सती अस नारी ||

तो इस प्रकार “राम” शब्दकी उत्पत्ति स्पष्ट हों जाती है | देवो के देव महादेव नित्य-निरंतर “रामनाम” का सुमिरन करते है, इसीलिए “राम” महामंत्र है, मंत्रराज है, ब्रह्मतारक मंत्र है क्योंकि बड़े कभी छोटी वस्तु का आश्रय नहीं करते | भगवान शंकर तो जगत के पिता है, हमारे सनातन धर्मका मूल है |

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