नारियल और सनातन धर्म

नारियल
मंदिर में नारियल क्यों चढ़ाते है इसके पीछेके विज्ञान के बारेमें विस्तारसें पढ़े | सनातन धर्ममें नारियल कों सर्वाधिक शुभ फल माना जाता है | इसी कारणसें इसका एक नाम श्रीफल है | नारियलमें अनिष्टकारी तरंगोकों खींचनेकी क्षमता है | नारियल अर्पण करते समय उसका आँखवाला भाग भगवानकी मूर्तिकी तरफ होना चाहिये | जिसका विज्ञान यह है कि, आँखोवाली ओर सें ही नारियल देवशक्ति ग्रहण करता है और हमें प्रदान करता है |
नारियल फोड़ते समय फ़ट की जो आवाज आती है, वह मंत्र के समान शक्तिशाली होती है, जिससे अनिष्ट शक्तियाँ दूर रहती है और हमारे आसपासके वातावरण कों निर्मल बनाती है (हमारे बहुतसें मंत्रोमें फ़ट का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह आवाज पवित्र है) | इसके अतिरिक्त नारियलके पानी को गंगाजल और गौमूत्र के समान शुद्ध एवं पवित्र माना गया है |
नारियल देवालयोमें चढ़ाने के पीछे विज्ञान यही है कि, ज़ब हम किसी मंदिरमें किसी देवी याँ देवता को नारियल चढ़ाते है तो एक प्रकार सें हम अपना सिर, अपना अहंकार, अपना अस्तित्व इस नारियलके रूपमें अर्पण करते है और बदलेमें सु-बुद्धिवाला मस्तक मांगते है | नारियलका आकार मनुष्यके मस्तकके समान होता है |
इसके अलावा हमारा आध्यात्म जगत कहता है कि, नारियल में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है। नारियल पर दिखाई देने वाली तीन आंख भगवान शिव के त्रिनेत्र का रूप मानी जाती हैं। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि नारियल पानी का घर में छिड़काव करने से सभी नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं।