गणपति की पूजा और विज्ञान |

गणपति
आइये विस्तारसें जानते है कि, “सबसे पहले गणपति की पूजा क्यों होती है” | जिस प्रकार भगवान विष्णु विष्णुलोक और भगवान शिव शिवलोक के स्वामी है बिलकुल उसी तरह गणपति पृथ्वीलोक के स्वामी है | गणपतिमें पृथ्वीतत्त्व की प्रधानता विशेष है | पृथ्वीलोक के स्वामी होने के नाते वे दसों दिशाओ के अधिपति भी है | मूर्ति शास्त्र के अनुसार गणपतिका रंग लाल है | हमारे शरीरमें जो पहला चक्र मुलाधार है, गणपति उस चक्रके स्वामी है | मुलाधार चक्र का जो कमल है, उसका रंग लाल है | लाल रंग के पुष्पों का स्पन्दन गणपति तत्त्वसें मेल खाता है | इस कारण गणपति पवित्रता स्पन्दन की ओर शिध्रता सें आकर्षित होते है और जल्दी ही प्रसन्न हों जाते है | इसलिए गणपतिकी पूजामें विशेषरूपसें लाल फुले के साथ लाल वस्त्र और रक्त चंदन का भी प्रयोग किया जाता है | लाल रंगके पुष्पों के अतिरिक्त गणपति पर दूर्वा (कोमल घास) भी चढ़ाई जाती है | दूर्वामें भी गणेश तत्त्वकों आकर्षित करने की शक्ति है | इसलिए गणपति पर 1,3,5,7 की संख्या में दूर्वा चढ़ाने का विधान है |
गणपति की मूर्ति याँ चित्र की ओर सामने सें देखते समय जिस मूर्तिमें उनका अग्रभाग हमारी दाई ओर मुड़ा हुआ हो, ऐसी मूर्ति याँ चित्र को ही घर के पूजाघरमें रखना चाहिये | इस मूर्ति कों वाममुखी मूर्ति याँ चित्र कहते है | ऐसी मूर्ति घरमें सुख-शांति लाती है | शास्त्रमें वर्णित है कि, घरमें दक्षिणामुखी गणपति नहीं रखने चाहिये क्योंकि दक्षिण दिशा यमलोक की दिशा है, जहाँ मनुष्यके पाप-पुण्य का हिसाब रखा जाता है | इसलिए यह दिशा अप्रिय है | इसी कारण ऐसी मूर्ति बिना कर्मकांड के पूजनी नहीं चाहिये | परंतु मंदिरो के लिये ऐसी मूर्तियाँ उपयुक्त है क्योंकि वहाँ पूजा-पाठ विधि-विधान के साथ समयानुसार होता है |
मूर्ति के खंडित होने पर उस पर अक्षत डालकर जलमें विसर्जित कर देना चाहिए याँ फिर आदरसें पीपल के वृक्ष के निचे रख देना चाहिये |