सत्य घटना

हनुमानजी
सुंदरकांडके पाठसें भक्त (हनुमानजी) और भगवान (प्रभु श्रीराम) दोनों प्रसन्न होते है क्योंकि सुंदरकांडमें दोनों की विजय गाथा और दोनों के चरित्रका वर्णन है | प्रभुके गुणगान गानेसें हनुमानजी और हनुमानजी के गुणगान गानेसें प्रभु प्रसन्न होते है |
निरंतर सुंदरकांडका आश्रय करनेसें असाध्य रोग भी साध्य हों जाते है | एक सत्य घटना पढ़े और सुंदरकांडके प्रभावकों महसूस करें |
श्रीरतनजी गोयंका उनके साथ जो घटना घटी थी, उसके बारेमें बताते है कि, मेरे दादाजी डॉ. मदनलाल राजस्थानके रहनेवाले थे | वे तथा उनके सुपुत्र डॉ. मोतीलाल गोयनका (मेरे पिताजी) तो आस्तिक और धार्मिक आचार-विचारके थे किन्तु तीसरी पीढ़ीमें मैं नास्तिकतावादी हो गया | मुझे भगवानके नामसें चिढ़ थी | मैं हमेंशा आधुनिक रंगमें रंगा रहा | 6 मार्च 1975में अचानक मेरी तबियत खराब हों गयी | 1975 सें 1977 तक मेरा मस्तिष्क खराब रहा | कलकत्तासें बड़े-बड़े डाक्टरसें तथा दिल्ली, मेरठ, चूर आदि स्थानोंके सु-प्रसिद्ध चिकित्सकोंसे उपचार कराया | ऐलोपैथिक, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक दवाए और उपचार तथा जंतर-मंतर सभी कुछ किया-कराया गया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ | इस बिच दवा तथा उपचारमें लगभग अस्सी हजार रूपये लग गये | काम छुट गया | एक पैसा कहीसें मिला नहीं | चारों तरफ अंधकार ही अंधकार द्रष्टिगोचर होता था |
एक दिन दुःखी और अत्यंत निराश होकर मैं आत्महत्याके विचारसें दक्षिणेश्वर गया | माँ कालीके दर्शन किये | वही एक साधु कौनेमें बैठे थे, वे मुझे देखकर बोले, बेटा! तुम दुःखी हों, यह दुःख तुम्हारे अपने ही कारण है | भगवान पर विश्वास रखो | घर वापस लौट जाओ और सुंदरकांडका पाठ करो, सब ठीक हों जायेगा |
विश्वास तो था नहीं, पर मरता क्या न करता? 6 नवम्बर 1977 सें विधिपूर्वक सुंदरकांडका पाठ आरम्भ हुआ | थोड़े दीनोंके भीतर ही मन तथा स्वास्थ्यका ठीक होना शरू हों गया | अनुष्ठानकी पूर्णाहुति होते-होते हनुमानजी की कृपासें पूर्ण स्वस्थ हों गया | तबसें प्रभुकी कृपासें स्वास्थ्य, पैसा, काम सभी कुछ इतना सुंदर है कि मनमें विचार होते है कि, मुझ जैसे नास्तिक आदमी पर ज़ब हनुमानजी इतनी दया है तो भगवानके भक्तो पर कितनी होंगी |