तीर्थयात्रा और विज्ञान
आजकी इस पोस्टमें तीर्थयात्राके वैज्ञानिक और आध्यात्मिक फायदोंके बारेमें विस्तारसें पढ़े | हमारे सनातन धर्ममें तिर्थोका एक महत्त्व स्थान है | तिर्थोमें निरंतर धार्मिक कर्म होनेके कारण वहाँ का वातावरण अत्यंत पवित्र और निर्मल होता है | तीर्थकी भूमि धर्मभूमि एवं तपोभूमि होती है | तीर्थमें दूषित वायुकी जगह यज्ञकी सुगंधित, रोगनाशक और आरोग्यप्रद वायु होती है | इसके अलावा प्रकृति स्वाभाविक छटा हमें वहाँपर देखनोको मिलती है | हरिद्वार, ऋषिकेश, केदारनाथ आदि तीर्थ इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है, जहाँ की कुदरती छटा आज भी हमारे मनको आकर्षित करती है | तीर्थंमें दान पुण्य की सात्विक धार्मिक भावना जागृत होती है, जिसके कारण दूषित भावना तथा पापकी प्रवृतिकी निवृति होती है |
तिर्थोमें जानेके सबसे बड़ा फायदा है सत्संगकी प्राप्ति | तिर्थोमें मनुष्यको साधु-संतोका संग, उनका सानिध्य प्राप्त होता है | जिससे उनका आत्मकल्याण होता है | तीर्थके बारेमें हमारे शास्त्रमें लिखा है कि,
तीर्थे तीर्थे निर्मलम् वृन्द वृन्दम्,
वृन्दे वृन्दे तत्त्वचिंतानुवाद: |
तिर्थोमें निर्मल ह्दयवाले व्यक्तियोंका निवास होता है, उन व्यक्तियोंमें आध्यात्मिक चर्चा होती है, आध्यात्मिक चर्चा तथा सत्संगसें तत्त्वबोध होता है और तत्त्वबोध होनेपर परमात्माका प्राप्ति हों जाती है | इस प्रकार तीर्थ हमारे लिये आध्यात्मिक शिक्षाका केंद्र है | बड़े-बड़े धार्मिक कर्म, महायज्ञ, नाम-स्मरण, कीर्तन, पूजा-अर्चना आदि तीर्थोमें नित्य होनेके कारण वहा का वातावरण ही धार्मिक और आध्यात्मिक होता है, जिससे तीर्थ स्थानोंमें पहुँचते ही हमारे ह्दयमें धार्मिक वृति तथा पवित्र शुभ-भावनाका उदय होता है |
तीर्थोमें तथा गंगा, यमुना आदि नदियोंमें लोंग पैसा डालते है, प्राचीनकालसें यह प्रथा चली आई है, जिसमे यह रहस्य भरा है कि, ताँबेके पैसे पड़नेसें जलमें बहुत ही गुण तथा शक्ति उत्पन्न हों जाती है जो हमारे शरीर पर विलक्षण प्रभाव डालती है | तीर्थोका इतना बड़ा महात्मय होनेके बावजूद हरेक व्यक्तिको अपने जीवनकालमें तीर्थयात्रा अवश्य करनी ही चाहिये क्योंकि तीर्थयात्रा करनेसें मनुष्य मन, वचन, कर्मसें निर्मल बनता है |
श्रीरामकथाकार – पुनीतबापू हरियाणी